कितना खास था न वो पल ....
कितना खास था न वो पल ....
कितना खास था न वो पल
जब हम तुम एक साथ थे,
वो मिलना-जुलना,
वो लड़ना झगड़ना,
वो रूठना मनाना,
वो घण्टो हमारी बातें, .
सड़कों पर हाथ पकड़कर घूमना ।
वो एक-दूसरे का इंतज़ार करना,
एक-दूसरे पर हक़ जताना,
मिलने का बहाना बनाना,
तुम्हारा मुझे चुपके से देखना,
फिर नज़रें चुराना ।
वो बेवज़ह की बातें करना
हर बात एक-दूसरे को बताना,
वो तुम्हरा मेरे नखरे उठाना,
बात-बात पर गले से लगाना,
से प्यार से हाथ थामना।
वो मेरा ज़िद करना,.
और तुम्हारा उस ज़िद को पूरा करना,
फिर हमारा छुप-छुप कर मिलना।
वो तुम्हरा कहना कि कब मिलोगी,
और मेरा न कहने पर तुम्हारा मुँह फूलाना,
वो बस में एक साथ बैठना, .
और चुपके से मेरे गालों को चूमना,
मेरा तुमसे झुमके पसन्द करवाना,
और तुम्हे घण्टो बाज़ार घुमाना,
फिर मुझे मुश्किल से कुछ पसन्द आना
वो कुछ पल के लिए मिलना,
और दिन भर एक दूसरे को याद करना,
फिर अगली मुलाकात का इंतजार करना,
वो एक दूसरे के साथ घण्टो समय बिताना,
और उस पल में खो जाना।
कितना अच्छा था न सब कुछ ?
फिर क्यों बदल तुम?
फिर क्यों कम हो गया तुम्हारा प्यार ?
फिर क्यों धोका दिया तुमने ?
फिर क्यों हार गया हमारा प्यार?

