हुल का आग जला
हुल का आग जला
जब छीन
उजाड़ रहे थे
लोगों का घर,आंगन
कपड़े-लत्ते
हरियाली जंगल
खेत-खलिहान
और मिट्टी के अंदर का पानी।
तब हूल का आग जला
काला धुँआ निकला
आसमान की ओर
जब छीन रहे थे
विकास के नाम पर
लोगों का हक़ और अधिकार।
जब कुचल रहे थे गाड़ी से
निर्धन-गरीब लोगों को
चौड़ी सड़क पर,
सब कुछ खोकर
भाग रहे थे लोग।
आँसू से छाती
भींगा रहे थे
तब हूल का आग जला
और काला धुँआ निकला
आसमान की ओर।
जब लोगों को
मार रहे थे
लाल खून गिरा रहे थे
धरती पर
जब लोगों को
जात के नाम पर
धर्म के नाम पर
बाँट रहे थे।
तब हूल का आग जला
और काला धुआँ निकला
आसमान की ओर।
हूल- क्रांति
