हसीं है अदब सी..
हसीं है अदब सी..
हसीं है अदब सी
खिली सी एक मुस्कान है
छलकता नूर है चांद का
महफ़िलों की जान है
सादगी है आसमान सी
खुशनुमा परिन्दे सी उड़ती है
कर अटखेली बादलों संग
हवा के रुख से जुड़ती है
समाऊ कैसे लफ़्ज़ों में
ये हुस्न उससे परे है
मेहबुबा की इन अदाओं पर
बेमौत हम मरे हैं

