हरिगीतिका छंद...
हरिगीतिका छंद...
ममतामयी हृदयेश्वरी,
भव-भाव कर मॉं भंजना ।
सुरदायिनी-सुरवंदिता,
हे दिव्य रूप सुलोचना ।।
हे भारती सुर दान से,
बह पुण्य धार निरंजना ।
तम को हरें वरदान दो,
मति-मान्य हो मम वंदना।।
सुन सुरसती यह प्रार्थना,
तुम ब्रम्ह ज्ञान सुसाधना ।
विस्तार तम चहुॅं ओर है,
अब पाप से है सामना ।।
मझधार से भी पार कर,
सत ज्ञान से तुम थामना ।
सुख-संपदा सब पर रहे,
तब सिद्ध हो मम कामना।।
