हर सुबह
हर सुबह
हर सुबह मैं देखना चाहती हूं अपनी अलसाई आंखों से सूरज की किरणों में केवल चेहरा तुम्हारा
हर सुबह महकना चाहती हूं मैं इन दीवानी हवाओं की सौंधी खुशबुओं में ,कि ये एहसास कराती हैं तुम हो यहीं कहीं
हर सुबह मैं गुनगुनाना चाहती हूं कोई मीठी गजल ,मैं जानती हूं तुम भंवरा बनकर आते हो हर रोज सुनने
हर सुबह मैं करना चाहती हूं तुम्हारी बातें आईने से, जानते हो मुझे खुद में तुम्हारा अक्स नजर आता है
हर सुबह मैं चहकना चाहती हूं डाल पर बैठी उस चिड़िया की तरह जो मदमस्त है खुद में , तुम्हारी याद दिलाती है
सुनो ! जिस सुबह तुम नहीं आओगे किरण, पवन भंवरा और चिड़िया बनकर, मैं उस सुबह उठुगीं ही नहीं
हां! कभी नहीं......

