हर प्रेम मांगता है
हर प्रेम मांगता है
कांटों के घेरे
जख्मों के फेरे
पर्वत, सागर, तूफान लांघता है।
कभी त्याग के झौंके
कभी तप का आसरा
कभी बलिदानी पर हृदय टांगता है।
जी हां, दर्द, दुख और बिछुड़न
हर प्रेम मांगता है।
कांटों के घेरे
जख्मों के फेरे
पर्वत, सागर, तूफान लांघता है।
कभी त्याग के झौंके
कभी तप का आसरा
कभी बलिदानी पर हृदय टांगता है।
जी हां, दर्द, दुख और बिछुड़न
हर प्रेम मांगता है।