हर कोशिश
हर कोशिश
हाँ कुछ रुसवाइयां हुई है मुझसे
मग़र सजा इतनी भी ना दो हमें
खड़ा भी ना हो सकूँ इस जहाँ में
वो बात तो बता दो मुझे कम से कम ।।
कर लूँ मैं उपचार उस तन्हाइयों का
जिसने तुम्हें मुझसे से अलग रखा
मैं तुम्हें मनाने तेरे चौखट पे आ खड़ा
कि तुम मेरे भावों का यूँ मजाक उड़ा ।।
तुम जो मुरझाए फूल से दिख रहे हो
यूँ डाली से अलग ही रूठे से हो
जाने अनजाने में जो भूल हो गयी
तुम तो जिद्द पकड़ के तूल दे रही हो ।।
हाँ महफूज़ रखने तुझे हर कोशिश
तन्हाई में रही थोड़ी बहुत कशिश
अब तो मान भी जाओ मेरे हमदम
तुम्हें मनाने के जरा लगाते हैं दमखम ।।
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