जीवन की हर लम्हों
जीवन की हर लम्हों
जीवन के हर लम्हों को ऊकेरुं कैसे
कुछ बातें जो जहन से निकल सी जाती
ख़याल जो आता है कुछ लिखने का
उधेड़बुन जीवन में यूँ सिमट-से जाते
पन्ना जो कागज का कोरा है
कैसे पिरोऊँ उन शब्दों को
जिंदगी की हर पहलुओं से
उन लम्हों को यूँ टटोलना पड़ता है
कागज-कलम की गठजोड़ से
यादों के कुछ वाक्य रच जाते हैं
कुछ लम्हा जिंदगी के यूँ छूट जाते हैं
उन्हें गहरे भावों में मौखिक रखना पड़ता है
कुछ दब्बे पाँव जो अतीत के हैं
हरबार जो हमें अहसास करवाते हैं
हम जिंदगी के कितने ही तराने लिख लें
कुछ लम्हें यूँ सार्वजनिक नहीं लिखे जाते
कुछ ब्यथा गहरे इतने होते हैं
उन्हें यूँ शब्दों में बयाँ नहीं कर सकते
हाँ कुछ दास्तांओं से पन्ने अवश्य भर जाते हैं
मगर गहरे लम्हों को किताबों में कैद नहीं कर सकते।
