होलिका दहन व्यर्थ ना हो
होलिका दहन व्यर्थ ना हो
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उनके रंग में रंगते ही लग गई देह में आग ।
सजनी साजन से कहे, आओ खेलें फाग ।।
तन-मन रंगीन कर, जलाए होलिका चिराग ।
अपने घर को अब सखे, लौट चला है फाग ।।
हर तरफ है धूम मची , आया देखो फाग
धरती से आकाश तक, गूंजे फागुन राग।।
होली की रुत आ गई, खेले रंग गुलाल।
शुभ कामना दे रही, मिले खुशी हर साल।।
रंगो के इस मेले में देखना कोई युद्ध ना हो।
होलिका दहन कभी आगे जाकर व्यर्थ ना हो।।