होली रे होली!
होली रे होली!
क्या है तू किसी की खुशियों का आसमान,
या है उम्मीदों भरी रंगों की दुकान?
अंधेरे को जला रौशनी फैलाती अनल,
या है मन में छिपा एक स्वर बेकल?
तेरे अस्तित्व की भी एक अलग ही माया
खुद रंग ने तेरा रंग ले हम पर बरसाया.
क्या कहूं मैं तुझको ऐ मेरी होली,
खुशियों की टोली या है तू यादों की डोली!
संजोयी थी तेरे आँचल में मैंने एक इठलाती हमजोली
घूरती है अब यूँ मुझको हो जैसे कोई हँसी- ठिठोली !
फुसफुसाती है कानों में मेरे, तेरी मीठी सी ये बोली,
तेरे आंगन में है आयी इस बार एक 'बेमन सी होली'!