STORYMIRROR

SHALINI SINGH

Others

4  

SHALINI SINGH

Others

अनजान हमसफ़र

अनजान हमसफ़र

1 min
454

हर सोच का व्यापार ,हर नफरत का किरदार,

क्युँ खुद ही में तुम तलाशते फिरती हो?


अनजान हमसफ़र हो तुम खुद सफर पर,

किस गली मुड़, किसका पता पूछती हो ?


नहीं बन सकता हर शख्श तुम्हारा ख़ुदा,

क्युँ बेवज़ह रब की रुबाई तरासती फिरती हो?


यूँ फ़िज़ूल की बातों पर गौर न दिया करो,

शायरों के घर नहीं होते, साहिबा, 

क्यों ख्वाहिशों के आशियाने में बसर करती हो? 



Rate this content
Log in