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SHALINI SINGH

Others

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SHALINI SINGH

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घर!

घर!

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कुछ तो बहुत ज़ोर से टुटा होगा,

जो तुमने किसी से ना कहा होगा,

सबसे छुपा के बस घर से निकलते ही,

उठा कहीं दूर जा पटका होगा!

कुछ तो बहुत ज़ोर से टुटा होगा, 

जो अब अकेले रहने से डर नहीं लगता,

खुद को संभालना अब एक हुनर है लगता,

ज़िंदगी  का ख़र्च चाहे घुटन दे रहा हो,

किसी अनजान के साथ अब घर बसर नहीं दिखता, 

कसेगी दुनिया ताने जब देखेगी ऐश तुम्हारी,

की उन्हें क्या पता की कभी कुछ ठीक नहीं होता,

कई घाओं को तो बस छुपाने ख़ातिर

हर किस्म का मरहम है बिकता,

क्या हुआ, क्या टुटा, 

भरोसा था क्या? 

किसने तोडा?

अच्छा,  

कहते हो किसने नहीं तोड़ा,

रिश्तेदार था कोई या था खून ही अपना,

या था बचपन से देखा एक हसीन सपना,

या थे दोस्त जिनपे ज़िंदगी वारते थे,

या था कोई जिसे घंटों ताड़ते थे,

क्या टुटा था जो फेंक आये हो,

ऐसा भी क्या जो दिल में दबाये हो

कह दो मुझसे की मैं लगता नहीं तुम्हारा कुछ,

तुम्हें सुनुँगा, नसीहत न दूँगा अब कुछ,

तुम जिसे हुनर कहते हो दरअसल वो डर है,

कि अब लौट आओ, 

तुम्हारे पास अपना भी एक घर है!



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