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SHALINI SINGH

Romance

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SHALINI SINGH

Romance

आज तुम्हें लिखुँ!

आज तुम्हें लिखुँ!

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दिल ये कह रहा था कि चलो आज तुम्हें लिखूं

और दिमाग़ पूछ बैठा

"उससे अलग और कुछ लिखा भी है तुमने?


सुना है वो तो अब तुमसे इत्तेफ़ाक़ भी नहीं रखता,

और तुम्हारा हाल उसके ज़िक्र से नहीं थकता!


क्या ख़ास है उसमें!

जो हर बात तुम्हें लगती है आम,

हर दिन शुरू उसके नाम से,

ढलती है उसी पर आकर क्युँ हर रोज़ तुम्हारी शाम?


मैं कहती हूँ कि थम जाओ कहीं आकर,

के उमर मशमार ना हो जाए,

किसी के मुरीद यूँ न बन जाओ

कि ये दिल क़ाफ़िर हो जाये!


उसकी यादोँ से ख़ुद को 

अब तो जुदा कर दो,

वो किसी और की बाँहों में सोया है,

 ख़ुद को अब इस ख़्याल से रिहा कर दो."


दिल ये फिर कह रहा है, आज तुम्हें लिखूं!



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