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Deepika Raj Solanki

Classics

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Deepika Raj Solanki

Classics

होली के रंग संगीत के संग

होली के रंग संगीत के संग

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देवभूमि की देखो होली

आओ सखियों मेरे संग,

कितने हैं इसमें सुंदर - सुंदर प्यारे रंग,

गाते हैं मतवाले होली के कई छंद,

ढोलक और मंजीरे के संग,


देवभूमि में संगीतमय हो जाती है होली,

जितनी मधुर है यहां पर कोयल की बोली,

पौष माह से हो शुरू फागुन की पूर्णिमा तक

कई रागों से सजती होली की टोली,

देव आराधना के गीतों से शुरू होती जो होली,


मन और तन को मोह लेती जिसकी हर बोली,

सफेद साड़ी में लाल धारी,

पहनकर जब चलती यहां की नारी,

श्रृंगार रस से भर जाती फिर होली हमारी,

घर-घर सजती बैठी होली,


जिसमें गाते कृष्ण गोपियों की ठिठोली,

सफेद कुर्ता, पहन चूड़ीदार पजामा और धर सर पर टोपी,

निकलती मस्तानों की खड़ी होली की टोली,

अबीर - गुलाल से रंग जाता, धरा और आसमान सारा,

छोड़कर रंजिश दिल की,


 हर कोई प्रेम रंग में रंग जाता,

 चंद्रवंश से हुई शुरू जो, होली की गायन माला,

 अब तक गुनगुनाते हैं यहां पर हर नर और बाला,

 संगीत के रंग में डूबी होली में,

 झूम उठा देव भूमि का खंड सारा,


 गुजिया की मिठास और आलू के गुटके के संग

बढ़ जाता होली का स्वाद कई सारा,

 आती होली मुझे अपनी बहुत याद,

 होली मेरे कुमाऊं की होती बहुत खास,

 आओ सखी देखो होली देवभूमि की मेरे साथ।


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