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Lokanath Rath

Classics Inspirational

4  

Lokanath Rath

Classics Inspirational

बदलगए दिन.....

बदलगए दिन.....

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वो भी एक दिन थे

जब हम मिला करते थे,

घंटों बैठकर बाते करते थे

सुख दुःख बाँटा करते थे।


न था समय की डर

न था समाज की फिकर

न था औकात पे नज़र

बस करते थे सिर्फ प्यार।


जाती धर्म कभी पूछते नेहीँ

 उँच नीच कभी सोचते नेहीँ,

भेद भाब कुछ जानते नेहीँ

 सब कुछ था बिलकुल सही।


तीव्हारों के बात क्या बतायें

वो खुशियाँ की सारे हावएँ,

अब भी जब याद आएँ

मन बड़ा उदास हों जाएँ।


तब जो झूमते गाते थे

सबको अपनी गले लगाते थे,

मिठाई तो जरूर बाँटते थे

जवान भी मीठी बोलते थे।


अब जब बैठ सोचता हुँ

दुनिया को भी देखता हुँ

बदलगए दिन अब सुनता हुँ

फिर चुप चाप रहेता हुँ।


अब वो मिलना जुलना नेहीँ

एक साथ बैठना तो दूर,

पास से तो गुजरते नेहीँ

बदलगए दिन, अपने हुए दूर।


जाती धर्म के पाठ पढ़ाते

बाँटते सबमे अब सिर्फ नफरते,

बदलगए दिन, वो हुए अतीत

 तीव्हारें अब वैसे कहाँ मनाते?


अब देश का नहीं सिर्फ

हुआ है सोच के बँटवारा,

अपनापन अब हुआ है किनारा

बदल गए दिन का देते नारा।


पता नेहीँ कुछ समझ नपाऊँ

कैसे किस किसको फिर समझाऊँ,

बदल गए दिन, अब मानता हूँ

पर इन्सानियत को भूले क्यूँ ?


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