हमसफर
हमसफर
यूं ही गुजर रहा था
तन्हा तन्हा ही जिंदगी के सफर में,
तुम मिले तो राहें खुशनुमा सी हो गयीं मेरी-
और कल तक दिल के सूखे रेगिस्तान में
जहां उगते थे कैक्टस कांटे लिए हुए,
वहां खुशबू बिखरती कलियां सी
खिलकर बिखर गयीं मोहब्बत की तेरी-
वह सफर जो थाम कर हाथ मेरा
चल दिये आहिस्ता आहिस्ता बन कर हमसफर-
नर्म नर्म तेरे इश्क की हरी हरी दूब पर
भूल गये हम जिंदगी की राह मगर-
समय के चक्र ने भले कर दिया हो मजबूर हमें-
भाग्य के अभिलेख ने कर दिया हो दूर हमें-
लेकिन आज भी तुम
यादों की पहाड़ियों से मेरे लिए आती हो सफर कर के-
और मैं भी चुपके से खो जाता तेरी यादों के तकिये अपना सर रख के-
तुम आज भी अपनी गोदी रखकर सर सहलाती हो-
यादों में जब अक्स बन कर करीब आती हो-
मैं चुपचाप तुम्हारी मोहब्बत की उंगलियां थामें महसूस करता हूं-
अहसासों की वह चुभन आज भी सहता हूं-
सच में,
यह जिंदगी का सफर अक्सर छूट जाता है-
लेकिन सफर-ए-मोहब्बत
वह हमसफर हमेशा बहुत याद आता है।