STORYMIRROR

Atam prakash Kumar

Abstract

3  

Atam prakash Kumar

Abstract

हमारे सरीखा ज़माना नहीं है

हमारे सरीखा ज़माना नहीं है

1 min
276


हमारे सरीखा ज़माना नहीं है ।।      

हमारे लबों पर तराना नहीं है ।      

पुराने ज़माने का है यह फ़साना,      

मगर दिल हमारा पुराना नहीं है ।     

हमें है निभानी यहीं पर सभी से,      

मगर अब किसी का ठिकाना नहीं है।  

बहुत से पड़े हैं ख़जाने जहां में,   

;   

हमें चाहिए वो ख़जाना नहीं है ।।     

सभी मनचले दिल यही है लगाते,     

हमें दिल यहां पर लगाना नहीं है।     

तुम्हें तो मोहब्बत निभानी है सबसे,

मोहब्बत का मतलब सिखाना नहीं है।

हमारे ज़हन में बसी है हसीना,    

किसी से हमें तो छुपाना नहीं है ।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract