हम सबकी मां
हम सबकी मां
मंद मंद मुस्काती है,
मन में बात छुपाती।
दर्द में कहरती है,
हमको ना दिखाती है।
इच्छा को पी जाती है,
शिक्षा हमें दिलाती है।
दुनिया से लड़ जाती है,
कभी आंच ना हम पर आती है।
आंसू अपने छिपाती है,
घुट के रह जाती है।
सह सब जाती है,
इतनी शक्ति कहां से आती है।
कहीं वो देवी तो नहीं कहलाती है,
एक मां ये सब कर जाती है।
तो घर में ही देवी रहती है।।
मेरी मां।
