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SHRADDHA SINGH

Abstract Romance

4  

SHRADDHA SINGH

Abstract Romance

एक प्रेमिका का प्रेमी को पत्र

एक प्रेमिका का प्रेमी को पत्र

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सुन, मितवा गांव तुझे पुकारता है।

तुम्हारे कपड़े जो मां ने सिले।

वो अब भी बक्से में वैसे ही रखे है।

बाबा ने नई कमीज़ बनवाई थी।

सोचा बहन ने अबकी बार तुम घर आओगे।

गांव में नई फसल लग गई।

कितने बरस बीत चुके।

दादी तो अब चल बसी ।

उनकी बरसी में भी ना आ सके तुम।

क्या इतना शहर भा गया तुमको।

जो अपने घरवालों को ही भूल गए।

हर जन्म दिन पर मां सबको बुलाती है।

सब आते है और हम सब मनाते है।

बस तुम ही नहीं आते।

क्या नाराज़ हो तो बता दो बाबा पूछते।

बाबा के हाथ अब कांपने लगे है।

मां की आंख का ऑपरेशन भी हुआ।

बहन बिहाने लायक हो गई है।

तुम तो सबका हाल सुधारने गए थे ।

क्या हाल से बेहाल कर गए।

एक चिट्ठी तो लिखी होती। 

कैसे हो, क्या हो, कहां हो?

सोचा था तुम्हारे वापस आते ही 

बाबा हमारा रिश्ता तय कर देंगे।

तुम्हारे इंतज़ार में 5 बरस बीत गए ।

पर तुम आए ही नहीं।

तुम ठीक तो हो ना, मेरे राम।


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