हम फिर से अपने ठिकाने आ गये
हम फिर से अपने ठिकाने आ गये
दुनिया में झूठी शान दिखाने आ गए,
हम फिर से अपने ठिकाने आ गये
घर पर बिताए लम्हें
कुछ ऐसे निकले,
बंद मुट्ठी में जैसे बर्फ पिघले,
तब आँखों में चमक,
होठों पे मुस्कान
और गालों पे लाली थी
जब मुट्ठी खुली तो वो पूरी खाली थी,
दर्द का एक सागर है
जो दिल में उमड़ रहा है,
लेकिन खुश रहने के भी
सौ बहाने आ गए,
हम फिर से अपने ठिकाने आ गये
घर पर एक सुकून है,
एक सोंधी सी महक है,
वहाँ पेड़ों की हवा है,
चिड़ियों की चहक है,
वहाँ हर पल में
खुशियों की कोई बात होती है,
वहाँ शाम की चाय है,
यहाँ सीधे रात होती है,
पर कौन जाने
किस्मत में क्या लिखा है,
इतनी अनमोल ख़ुशियाँ छोड़कर
चंद रूपए कमाने आ गए,
हम फिर से अपने ठिकाने आ गये,
दुनिया में झूठी शान दिखाने आ गए,
हम फिर से अपने ठिकाने आ गये।।