स्त्री
स्त्री
स्त्री तेरी हस्ती अजीब,
चेहरे पर मुस्कान आँखों में पानी भी है।
निराशा को ठोकर में शरण तू है,
घर की रक्षा में आवरण तू है,
कुछ पल में जो ख़तम हो वो किस्सा नहीं तू,
जो सदियों तक चले वो कहानी भी है,
स्त्री तेरी हस्ती अजीब,
चेहरे पर मुस्कान आँखों में पानी भी है
कहने को कोमलता की मूरत तू है,
पर पुरुष के पौरुष की सूरत तू है,
जो ख़ुद में एक जीवन लेके
उसे जीवित रख सके,
इस जीवनचक्र की निशानी भी है,
स्त्री तेरी हस्ती अजीब,
चेहरे पर मुस्कान आँखों में पानी भी है
यमराज से जीवन लेके
आये इतनी हठी भी तू है,
तू सीता भी है और सती भी तू है,
राधा सा प्रेम, काली सा क्रोध,
मीरा सी तू दीवानी भी है,
स्त्री तेरी हस्ती अजीब,
चेहरे पर मुस्कान आँखों में पानी भी है
सृष्टि के सृजन की आस तू है,
क्रोध में सृष्टि का विनाश तू है,
अविश्वाश में विश्वाश का उजाला तू है,
तू ज्योति भी है और ज्वाला भी तू है,
राष्ट्र के चरित्र का श्रृंगार तुझसे है,
तू दुर्गा है दुष्ट का संघार तुझसे है,
विद्वान की समझ है तू बच्चे की नादानी भी है,
स्त्री तेरी हस्ती अजीब,
चेहरे पर मुस्कान आँखों में पानी भी है।