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Pradeepti Sharma

Abstract Romance Inspirational

3.8  

Pradeepti Sharma

Abstract Romance Inspirational

हलवा

हलवा

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सूर्य की हल्की हल्की सी धूप, 

शीत को सेंकती मद्धिम मद्धिम, 

पिघलाती ना सिर्फ उस कठोरता को-

रूखापन विचार का, स्वभाव का भी।

इस सौहार्द को थोड़ा और आनंदमयी बनाएँ, 

इसमें कुछ मिठास ले आएँ, 

सूजी और नारियल की करकराहट में, 

क्षीर और घृत की नम्रता घोलकर,

चलो कुछ निखार लाएँ, 

थोड़ा रंग से, थोड़ी महक से-

 गुलाब की सुर्ख पंखुड़ियों, 

और केसर के नाज़ुक रेशों की। 


फिर प्रेम की आँच पर उसे पकाएँ, 

चीनी के कण कण को, 

हौले हौले यूँ मिलाएँ, 

और देखे उसे गौर से,

अपनी काया के अस्तित्व को, 

सम्पूर्णतः समर्पित करते हुए, 

खुद को खोकर भी,

अपनी एक गहरी छाप छोड़ते हुए।


प्रेम का सही अभिप्राय यही है, 

बस यही है, 

बस यही है।


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