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Vivek Agarwal

Action

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Vivek Agarwal

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हलाहल पी चुके हैं हम

हलाहल पी चुके हैं हम

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हलाहल पी चुके हैं हम कि अब तांडव की बारी है।

कि दुष्टों को क्षमा करने की इक सीमा हमारी है।


सनातन का जो शत्रु है समय रहते सुधर जाये,

अगर जागृत ये हो जाये तो हर दुश्मन पे भारी है।

 

कि अपने खून से इस देश को हमने सँवारा है,

चढ़ाई भेंट मस्तक की कभी इज़्ज़त न हारी है।


हमारी सभ्यता कहती जियो खुद और जीने दो,

समय की मांग आयी जब ख़ुमारी सब उतारी है।


सुनो चेतावनी 'अवि' की शराफ़त से रहो मिल के,

जटाधारी की काशी है न मेरी ना तुम्हारी है।



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