हिंदी सिसकी ले रही
हिंदी सिसकी ले रही
हिंदी सिसकी ले रही, मिला नहीं शुभ मान।
बोलें सब जन नित इसे, और करें गुणगान ।।१।।
सारे हिंदुस्तान में, हिंदी है मजबूर।
अंग्रेजी का है चढा, सब पर आज सुरूर।।२।।
निज भाषा सब छोड़ते, अंग्रेजी की दौड़।
कैसी बनी विडंबना, मची है सब में होड़।।३।।
कारज सब व्यवहार के, अंग्रेजी आधार।
हिंदी घर में रो रही, कर लो बेड़ा पार ।।४।।
देखा देखी में हुई, हिंदी सबसे दूर।
भूले उन्नति मूल को, जो थी सबकी नूर।।५।।
हिंदी में नहि न्याय है, माँगे हिंदी न्याय।
न्यायालय हिंदी लहे, ऐसा करें उपाय।।६।।