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नवल पाल प्रभाकर दिनकर

Drama

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नवल पाल प्रभाकर दिनकर

Drama

हिन्दी साहित्य

हिन्दी साहित्य

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साहित्य के अथाह सागर में

डुबकी लगाना चाहता हूं,

डुबे हुए बहुमूल्य शब्द चुन

हिन्दी को बचाना चाहता हूं ।


आज जरूरत है मेहनत की

जो बना दे लोहे को सोना

भोतरे शब्द तपा-तपा कर

बना दे जो बहुमूल्य हीरा

फिर लेकर मैं हथौड़ा

अक्षरों को पीटना चाहता हूं,

डुबे हुए बहुमूल्य शब्द चुन

हिन्दी को बचाना चाहता हूं ।


तपाकर कूट-कूट शब्दों को

दूंगा फिर से आकार मैं

सुन्दर रेशमी धागे में पिरोकर

बना दूंगा गले का हार मैं

फिर हिन्दी साहित्य में मैं

वो चमक लाना चाहता हूं,

डुबे हुए बहुमूल्य शब्द चुन

हिन्दी को बचाना चाहता हूं ।


इन शब्दों का हार बनाकर

दुनिया के गले सजाऊंगा

नित देंखूं नित उजला होए

ऐसा मैं हार बनाऊंगा

दुनिया पहने मेरे हार को

बस यही मैं चाहता हूं,

डुबे हुए बहुमूल्य शब्द चुन

हिन्दी को बचाना चाहता हूं ।



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