"हिन्दी की व्यथा"
"हिन्दी की व्यथा"
अरबों वह खर्च कर देते
हिंदी पर पखवाड़े के नाम पर
जगह जगह विज्ञापन होते
प्रतियोगिताओं का रहता बोलवाला
इसे उसे सम्मानित करते
लेकिन हिन्दी शिक्षक बन जाता बेचारा।।
जब आती बात पढ़ाने की तो
शिक्षक हिन्दी के घट जाते हैं
कभी पढ़ाते थे आठ पीरियड
पर अब छह पर जाकर रुक जाते हैं।
उसमें में भी हिंदी वाले को
काम अनेकों बतलाते
शिक्षक दिवस,स्वच्छता अभियान
तो कभी पोषण पखवाडा
कभी किसी और अभियान में
हिंदी टीचर को लगवाते।
हिंदी को कोई विषय ना मानें
यूं ही जायेंगे बच्चे जान।
जिसको देना चाहिए सम्मान
उस हिंदी को ना मिलता मान।
बिना पढ़े सीख जाएंगे बच्चे
यह मान शिक्षक को दे देते
बहुत दूसरे और और काम।
बस यही सच है जो कटु है
कैसे व्यथा को दें विश्राम।
हिंदी तो बस यूं ही नाम की
इसीलिए तो जब आती है
हिंदी में शुद्ध उच्चारण की बारी
100 बच्चों में दस ही बोल पाते
न्यारी हिंदी भाषा प्यारी।
हिंदी अभी तक नहीं बन पाई
राष्ट्रभाषा अपने भारत देश में
दर्जा मिला राजभाषा का बस
इन्तज़ार अभी बाकी ऐसे परिवेश में।
विश्व ने माना लोहा इसका
पर घर में महाभारत जारी है।
अब तो यही कहावत रहती ठीक
"घर का जोगी जोगना आन गांव का सिद्ध"
अपनी भाषा को किया उपेक्षित
विदेशी को गले लगा लिया
हिन्दुस्तान में हिन्दुस्तानियों ने
हिन्दी को सौतेला बना दिया।
हिन्दी को सौतेला बना दिया।।
बस यही विनती सभी
अपनी भाषा को दो मान
नहीं तो तुम दुनिया में
नहीं पा पाओगे सम्मान।।