हिंदी की व्यथा
हिंदी की व्यथा
कक्षा में, एक अध्यापक की व्यथा सुनिए,
उसपर गुज़रे हालात को, मन में बुनिये।
प्रथम दिवस जब वो, कक्षा में पढ़ाने आया,
छात्रों ने उसे, कुछ इस तरह निपटाया।
था बदक़िस्मती से वो, हिंदी का अध्यापक,
धोती कुर्ता पहने था, सरस्वती का उपासक।
उसने स्वयं का सबको, यथोचित परिचय दिया,
और सादर सहृदय, विषय का श्री गणेश किया।
वो "दिनकर" की भाषा, छात्रों को समझा रहे थे,
कृष्णा की चेतावनी, कलयुगी कानों में पहुँचा रहे थे।
तभी, महोदय हिंदी में बोलिये, एक आवाज़ आयी,
उन्होंने देखा, सबके चेहरे पर स्तब्धता नज़र आई।
इसपर मास्टर साब खिसियाये, छात्रों पर बौखलाए,
जब होश में वापस आये, तो खुद पर ही पछताए।
उनके गुस्से से सबकी, हँसी ही फूट पड़ी है,
उनकी हिंदी, यहाँ किसी के भी पल्ले नहीं पड़ी है।
ये आज की पीढ़ी है, इनकी बात ही निराली,
हिंदी, इनके पल्ले, हिंदी में नहीं पड़ने वाली।
आखिर किसे कहा जाए, सोच मन ही मन मुस्काए,
शायद हिंदी भी अब, इंग्लिश में ही पढ़ाया जाये।