हिम्मत
हिम्मत
थी हमेशा हिम्मत डंडा खाने की , सिर तोड़वाने की , और उफ़ ना करने की
ना थी कभी मंशा डंडा उठाने की और हिंसा करने की
आज भी है हिम्मत डंडा खाने की और उफ़ ना करने की
पर आज जो डंडा मारेगा , उसे पलट के डंडा मारने की भी है मंशा ,
और उसका सिर तोड़वाने की भी है मंशा
आज उसने कर दी है अहिंसा की झिझक दूर
बना दिया है उसने डंडा अपना गन्ना , और गन्ना छिल जाता है ,
चब जाता है , बन जाती है उसकी गनडैरी
