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Vijay Kumar parashar "साखी"

Tragedy

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Vijay Kumar parashar "साखी"

Tragedy

हिजाब विवाद

हिजाब विवाद

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हिजाब का रख रहे है, वो हिसाब

जिनके हृदय है, बहुत ही नापाक

वो ही रखते है, व्यर्थ के काम याद

हिजाब से पहले जमीर रखो याद


अरे क्यो फैला रहे, जहर बेहिसाब

मिटाना, मिटाओ पाश्चात्य संस्कृति,

जिसने किया, संस्कृति को बर्बाद

कलमकार का दायित्व है, जनाब


मजहब की राजनीति वालो को,

सरेआम करे साखी, यहां बेनकाब

अपना मुल्क है, साखी आफ़ताब

इसमें नही लगाओ कोई भी दाग


खुदा उन्हें कैसे करेगा, यहां माफ

जो भाईचारे पर चला रहे तलवार

दुष्टों से सब हो जाओ होशियार

जो देश तोड़ने का कर रहे प्रयास


ऐसी नापाक ताकतों को दो जवाब

नही तो भारत मे खत्म हो जायेगा,

बरसो का लगा भाईचारे का गुलाब

एक कौम को न करो, इतना बदनाम


एक कौम के पीछे पड़ना छोड़ दो,

सर्व लहूं सम समाया हिंद बेहिसाब

जितना याद करते, भगत, आजाद

उतना ही याद करते है, अशफाक


वो शहीद भी देख देश का हाल

जोर से रोते होंगे, मार-मार दहाड़

हम किनके लिये मरे बेबुनियाद

जो अपने घर को कर रहे, खाक


छोड़ो आपस की शत्रुता, आप

जितना जरूरी है, प्रताप भाला

उतनी हकीम खां की तलवार

जो मर गये, पर न छोड़ी तलवार


यह मुल्क है, कोहिनूर नायाब

बिना एक-दूसरे के पकड़े हाथ

कभी न होगा, मुल्क का विकास

बेटियां सभी होती है, एक समान


हिजाब तो पहले ही था, जनाब

हटाना है, छोटी स्कर्ट को हटाओं

जो है, हिंद संस्कृति के खिलाफ

कोरा देश नही, इसमें मां का वास


यह देश, मां जैसा है, एक ख्वाब

बोलो जय हिंद, मिलकर सब आप

हिन्दू, मुस्लिम, सिख और ईसाई

सब सम भारती के बेटे समजात।


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