हिदायतें
हिदायतें
या तो फिजूल की आहें कम भरो,
या कस कर बाहें मिलो और ख़त्म करो।
क्यूं बीच राह में कचरे सा पड़े हो,
जितने बुरे सपने हैं सब दफन करो।
अच्छा कहते हो, कोई सुनता नहीं ?
ऐसा करो ये सब बातें नज़्म करों।
जब जी में आए तब ही कह दो,
इतना वक्त नहीं के रुका करो, शर्म करो।
हमने दे दिया है ये हक़ तुम्हें,
तुम जब चाहो ज़ख्म करो,
जब चाहो मरहम करो।