फागुन
फागुन
हां एक रंग है !
एक रंग है ना का।
बंद आंखों से दिखता है,
खोलो तो उड़ जाता है।
हां रंग है, सपनों का।
इस एक रंग से
जाने कितने संग बने है रंग बिरंगे।
छोड़ो तो यादें संग है,
बैठो तो बातें संग है।
हम जो सांथ हैं,
रंग ही रंग है।
तेरी सुबोहों, मैं स्वर्णिम रंग।
तू श्याम ढले तो श्यामल रंग।
हां तू रंग है मेरी हां का !
तेरे फाग का कुर्ता पहनूँ
उड़ता फिरूं, में तुझको टेरूं।
संग मैं अपने सच कर जाऊं
जहां भी जाऊं सज कर जाऊं
जो तेरे रंग में, मैं रंग जाऊं।