पुष्प माला
पुष्प माला




इक गुल की खामोशी में,
रंगों का शोर ओ गुल होता है।
खुशबू की आवाज़ें है,
इक गुल खामोशी में।
इसकी चुप्पी पर नाराज़ रहती हैं,
पत्तियां अक्सर।
जिसका फायदा उठा ले जाती हैं,
तितलियां अक्सर।
टहनियों को कहनी है
अनगिनत कहानियां
शाख में लिपटी पड़ी है
बरसों की निशानियां।
फूल को सब फ़िज़ूल
लगता है क्या ?
चुप रहकर ये सब कुछ
भूल सकता है क्या ?
बस एक मिट्टी है जो फूलों की
खामोशी को जानती है।
ये मिट्टी है जो जड़ों की चिठ्ठियां
फूलों को बांचती है।
धरती के नीचे से आया
आसमां को देखता है।
है मनुष्य सा ये नश्वर
ये अमर एक देवता है।
ये सब फसाने जानता है
ये हर कहानी में रहा है।
बस गुल ही है जो जानता है,
के वो आखिर कौन है।
इसलिए सब शोर में है,
इसलिए वो मौन है।