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Ankit soni

Abstract

4  

Ankit soni

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गहनों में आँसू पहने हैं

गहनों में आँसू पहने हैं

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तुम हो कहां,

कहां रहते हो

मैं देख रहा हूं 

हर किसी लहर में

तुम बहते हो।


इस तरह तुम कहां

पोहचोगे सोचा है ?

अब अगला क्या

सोचोगे सोचा है ?


मैं देख रहा हूं,

कोई एक राह नहीं दिखती

जिस पर तुम टिके रहे।

तुमने जो भी खरीदा है,

उसमे तुम ही बिके रहे।


तुम्हारी ख्वाहिशों की

कपकपाहट इतनी है

के लड़खड़ा दिया है तुम्हें।


ये तुम्हारी राह ही नहीं थी

जिस पर अरमानों 

ने बढ़ा दिया है तुम्हें।


और अब इतना भटक चुके हो,

कि कोई अपना नहीं है

रास्ता पूछ लो जिस से !


सच तो ये है खुद से भी

झटक चुके हो,

कोई सपना नहीं अपना

निशां पूछ लो जिस से।


मुझे दिखता नहीं कोई हल यहां से,

एक आवाज़ कह रही है

के चल यहां से।


कौन है जिसको तलाश है तेरी

तू किसकी खोज में है ?

इस सब मै कुछ नहीं रक्खा

छोड़ो इसे,

ये टूटा सा लम्हा पड़ा है आओ

जोड़ो इसे।


फ़िज़ूल बहना छोड़ो इसी में रहते हैं,

बैठो ! कुछ देर,

अपनी-अपनी कहते हैं।

जितना हम बहे,

उतने ही आंसू बहने हैं।


यही जचेंगे हम पे,

ये तो ज़िन्दगी के गहने हैं।


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