जिसे चाहा था उसे ले आया हूँ
जिसे चाहा था उसे ले आया हूँ
ज़्यादा नहीं बस इतना सोचा है
एक रैना का सपना बनूं मैं
धूप के आंगन में छांव से खेलूं
एक पक्के इरादे का पेड़ लगाऊं
हारे हुए लम्हों की डाली पर
नई हरी उम्मीदों के पत्ते लगाऊं
मैं ख़ुशियों के बहाने ले आया हूं
जिसे चाहा था उसे ले आया हूं,
आखिरी बार का वादा लेकर
अब बस कान्हा एक
साज़िश करनी है
मेघ बुलाना है और
बारिश करनी है
फिर छांव के आंगन में
बारिश से खेलेंगे
भर सावन में
नम नैनों से
अन्तिम निवेदन ले आया हूं
तुमने जितने चाहे थे
सारे परिवर्तन ले आया हूं
बहुत नहीं बस थोड़ा
जतन करना हैं
वो जितने सपने थे रैना के
सबके विमोचन करना है
धूप से
बारिश से
छांव से
आंगन के पेड़ की बाहों से
बस इतना वादा है