हे मानव, अब तो तू मान जा!
हे मानव, अब तो तू मान जा!
मौत का साम्राज्य
अँधेरों में डूबी धरा,
सुनी राहें, सुनसान डगर,
हर तरफ़ है एक सन्नाटा !
रक्तबीज
जो निगल रहा है
एक-एक आदमी को
ज़रूरत है एक बार फिर
माँ काली की
कर सके जो ख़त्म
इस रक्तबीज को
करे मानवता की रक्षा
जो एक बार फ़िर से है संकट में
पूरी दुनिया में
पसरा है मौत का आतंक !
मानव ने ख़ुद ही तो
जन्म दिया है रक्तबीज को
ख़ुद ही पैदा किया
अपनी मौत का सामान
न जाने कब होगी ख़त्म
मानव की रक्त पिपासा
न जाने कब समझेगा
जीवन के मोल को
ख़ुद ही ख़त्म न कर ले
अपनी बनाई दुनिया
जो आ खड़ी हुई है
विनाश के कगार पर
हे मानव !
सुधर जा,
जाग जा,
अब तो संयम बरत
न कर खिलवाड़ प्रकृति से
न बना भोजन
निरह जीवों को
बन शाकाहारी
अपने को सीमित कर
बचा वनों को,
बचा धरा को
तभी तो बचेगा तू भी।
जाग जा, जाग जा
अपनी हरकतों से
अब तो तू बाज आ।