हाथ उठाती हूं
हाथ उठाती हूं
चुन चुन कर पत्ते उठाती हूं,
रह रह कर ख्वाब सजाती हूं,
डर की क्या बात है
हर पत्ते पर उनकी पाती पाती हूं,
सती नहीं सावित्री हूं,
जग जुग जियो ऐसे हाथ उठाती हूं,
चेहरे की शिकन में दर्द छुपा कर रखती हूं,
जज़्बात के हर दौर में,
चेहरे की शिकन छुपाती हूं,
चुन चुन कर पत्ते उठाती हूं।
