हालात
हालात
क्या अजीब है हालात तो देखो जरा,
बेबस नाचार पत्थर की तरहा.
देखो ये रास्ते, सन्नाटा छाई हुई है,
अपनी बेबसी को तो सह रहा है.
नहीं है कोई गाड़ियों की हलचल,
इंतज़ार मे है , लौटेगा भी वो पल.
देखो वो सडक के किनारे बागीचे,
फूल खिल रहे है कैसे आगे पीछे.
शायद वो भी मायूस है हालाते पे,
क्या मज़ा है ऐसी अकेले खिलने मे.
एक दूसरे से कुछ बात करते,
आँखों से जैसे वो कुछ और धुंढ़ते.
ये भी शायद वो फिर सोचते होंगे,
इंतज़ार की घड़ी क्या ख़तम होंगे?
अब देखो तो रास्ते के बेजवानों को,
भटक रहे भूक प्यास मिटाने को.
ये हालात भला ऐसा कियूं हो गया?
सुनापन और खामोशीयां छा गया.
अब पहेले जैसी जिन्देगी ना रहा,
और रिश्ते मे नजदीकियां ना रहा.
पहेले ब्यस्त थे, मिलते भी रहेते,
तब समय को कोसते भी रहेते.
अब फुरसत मे है सब,फिर भी,
मिलने को ना इजाजत, है डर भी.
तब घंटों बैठे बातें भी करते थे,
अब बैठना छोड़ो मिलने ना देते.
तब घर मे तो एक साथ बैठते,
अब तो बैठने मे दूरियां रखते.
दोस्तों के साथ तो चाय की मज़ा लेते,
आज चाय छोड़ो, दोस्त कहाँ मिलते?
अपनों की निधन पर कन्धा देते,
आज कन्धा क्या, मिलने तो नहीं देते.
किसीके जाने से क्रिया कर्म करते,
अब उसकी इजाजत लेना होते.
शादी या कोई उस्चब खुशियाँ लाता,
अब तो ये एक सपने ही लगता.
देखो कितने आज बेकार हो गये,
दाने दाने के वो महोताज़ हो गये.
जगह जगह अब लाशों की भीड़,
इलाज भी मुश्किल तुटी अब रीड.
ये रीड पुरे समजा की तुट गया,
देखो ये हालाते ने मजबूर किया.
ऐसे भी हालाते होंगी सोचा नहीं था,
कुछ बेकार की बाते होना नहीं था.
अब सब है ये हालाते की शिकार,
वो आनेवाले पल की है इंतेज़ार..
