गूँज -इज़्तिरार
गूँज -इज़्तिरार
नज़र का वार,
वो दिल का क़रार,
कुछ इश्क़-सा था वो,
या बस यूं ही इज़्तिरार।
हवा में खुशबू,
जन्नत-सा जादू,
मोहब्बत ए आबशार
कुछ इश्क़-सा था वह,
या बस यूं ही इज़्तिरार।
रोका भी खुद को,
टोका भी खुद को,
डांटा भी,
कोसा भी खुद को,
रूह फिर भी करती रही,
लम्हा लम्हा,
उस दस्तक का इंतज़ार,
कुछ इश्क़-सा था वह या,
बस यूं ही इज़्तिरार।
हुए बेबस,
पंहुचे उस दर तक,
वो एक छुवन,
मिटा हर खुमार,
मेरा खुदा मेरी मज़ार,
है मंज़िल वही, वही करार,
ना जाने,
कुछ इश्क़-सा है वह,
या बस यूं ही इज़्तिरार।
रोशन तो है हर ज़र्रा,
उसी इश्क़ के रंगों से बेशुमार।