गुनगुनी धूप फिर खिली है
गुनगुनी धूप फिर खिली है


तू भी जानता है कि
तेरी ये झुंझलाहट बेवजह नहीं
तेरी ये कसमसाहट अकारण नहीं
कमबख्त वक़्त ने आज करवट बदलकर
एकाएक पलटी जो मारी है
इंसानी साँसों को निचोड़ दिया है
फुदकती धड़कनों को मरोड़ दिया है
मगर यार मेरे, क्या याद है तुझे
हर अंधेरी रात इक उज्ज्वल भोर लाती है
फिर शुरू होती है इक नई ज़िन्दगी
देख तेरी खुशियों की मुंडेर पर
तकदीर ने अपनी बगिया में
आशाओं के कुछ बीज जो बोये थे
अब अंकुर बनकर फूटने लगे हैं
कल सूरज की प्रथम किरण के साथ
ये मुस्कुराकर जब करेंगे तेरा अभिवादन
तो समझ लेना, जिसका था तुझे बेसब्री से इंतज़ार
दीप्तिमय पल वह आ गया है
बीते सुहाने लम्हे लौट रहे हैं
आँगन में खिली है गुनगुनी धूप
तेरे प्रारब्ध को अपनी मुट्ठी में समेटकर