गुनाह
गुनाह


कुछ गुनाह ऐसे भी,
जिनका ज़िक्र नहीं,
बस फ़िक्र की गयी,
आज फिर तेरी गली में,
आशिक़ो का हुज़ूम निकला।
बस चंद दिनों की बात और,
यही हर बार सोच कर,
मेरे दिल का फ़ितूर निकला।
और भी शिकवे हैं,
जो कहे नहीं गए,
ये और बात है,
उन पर कोई
टिप्पणी नहीं हुयी।
कोई रस्साकशी नहीं की गयी,
फिर भी उन पर इल्ज़ाम है,
उन्होंने गुनाह किया है,
प्यार करने का गुनाह।
जो नाक़ाबिले बर्दाश्त है
क्योंकि दस्तूर है
रुसवाई है और
वक़्त की कटुताई है।
जो कोई नहीं चाहेगा,
ये दिल का रिश्ता है
सिर्फ दिल को ही समझ आवेगा।