गुमसुम गगन
गुमसुम गगन
कितना चुप सा है गगन
कमी महसूस करता है
रोज़ की चहल पहल की
ये आसमां भी सोचता है कि
कहाँ है वो चहलकदमी
लोगों का शोरगुल
बच्चों की खिलखिलाहट
औरतों की चुगली...
कहाँ गुम है
वो लोगों की भीड़
रात में गाड़ियों की
जगमगाती रोशनी
वो गाड़ियों का हॉर्न...
कुछ तो हुआ है
आखिर तुम सब गुम कहाँ हो
ये आसमां भी याद करता है
और
खोया सा है
कुछ गुमसुम सा है।
