मधुशिल्पी Shilpi Saxena
Tragedy
हो चली है गुमशुदा ज़िन्दगी
न ही किसी की चाह हूँ
न ही किसी की तलाश हूँ
अपनो की ठुकराई हूँ
जिनकी दुलारी थी कभी
जान से प्यारी थी कभी
आज उन्हीं अपनों की नज़र में
बेवजह और बेकार हूँ।
हिंदी दिवस
मेरा भारत
माँ
मिट्टी का इंस...
देरी
जब सब बदल जाए
कही अनकही
गहराई प्रेम क...
लेखन
वो खार रहा सिर्फ खार... और एक कमतरी का एहसास...! वो खार रहा सिर्फ खार... और एक कमतरी का एहसास...!
नदी जब भी नदी से मिलती है ये कहती है हो गया पूरा मिलन धार एक हो कर बहती है। नदी जब भी नदी से मिलती है ये कहती है हो गया पूरा मिलन धार एक हो कर बहती है।
लोग लिख रहे हैं भूख पर और असमय काल के मुँह में समाती ज़िन्दगियों पर. लोग लिख रहे हैं भूख पर और असमय काल के मुँह में समाती ज़िन्दगियों पर.
वो सुबह कुछ अलग सी थी कुछ धुआं रेत बारीक सी थी। वो सुबह कुछ अलग सी थी कुछ धुआं रेत बारीक सी थी।
तड़के-तड़के जगकर हमने सर्वप्रथम भोजन तैयार किया है, उसके पश्चात बाहरी दाव-पेंच के लिए तड़के-तड़के जगकर हमने सर्वप्रथम भोजन तैयार किया है, उसके पश्चात बाहरी दाव-...
वक्त निकलता जा रहा कैसी बेतहाशा ये दौड़ है। वक्त निकलता जा रहा कैसी बेतहाशा ये दौड़ है।
गाँव की गलियों से जब जब गुजरा हूँ मैं पथ की बेरियों को उकेरा है मैंने। गाँव की गलियों से जब जब गुजरा हूँ मैं पथ की बेरियों को उकेरा है मैंने।
गज़ब गज़ब की बातें सुनी है उन्ही बातों में एक खास बात सुनी। गज़ब गज़ब की बातें सुनी है उन्ही बातों में एक खास बात सुनी।
जिंदगी में भरी निराशाओं में एक नई आशा का उजाला दिखा तो था। जिंदगी में भरी निराशाओं में एक नई आशा का उजाला दिखा तो था।
नौजवान गुमराह हो रहे । दूसरों के इशारों पर अपनों को ही लूट रहे । नौजवान गुमराह हो रहे । दूसरों के इशारों पर अपनों को ही लूट रहे ।
ढह रही भरोसे की कच्ची दीवारें, क्यूँ कि बुनियाद ही शक पर बनी थी। ढह रही भरोसे की कच्ची दीवारें, क्यूँ कि बुनियाद ही शक पर बनी थी।
मम्मी मैं क्या सच मे मर गई हूं जो आप लोग मेरे सारे कपड़े खुशी को देने चले गए थे ? मम्मी मैं क्या सच मे मर गई हूं जो आप लोग मेरे सारे कपड़े खुशी को देने चले गए थे ?
एकांत से घिरा, फिर भी साथी हूँ सबका, खुद को पहचानने का, यह अद्भुत सफर। एकांत से घिरा, फिर भी साथी हूँ सबका, खुद को पहचानने का, यह अद्भुत सफर।
पराई भाषा को दिया मान,, अपनी भाषा को माना कूड़ेदान। पराई भाषा को दिया मान,, अपनी भाषा को माना कूड़ेदान।
माँ ने अपनी कृपा प्रसाद से मुझे भरपूर अभिभूत कर दिया। माँ ने अपनी कृपा प्रसाद से मुझे भरपूर अभिभूत कर दिया।
तड़प का एक ज्वालामुखी सा समुन्दर मेरे भीतर भी बहता है तड़प का एक ज्वालामुखी सा समुन्दर मेरे भीतर भी बहता है
"अरे गौरव, इधर आ जा, देख ले। बता तुझे क्या चाहिए।" "अरे गौरव, इधर आ जा, देख ले। बता तुझे क्या चाहिए।"
शिकायत थी उनकी कि हम उन्हें मिलते नहीं। तो बन के खुशबू उनके बदन की महका जाये। शिकायत थी उनकी कि हम उन्हें मिलते नहीं। तो बन के खुशबू उनके बदन की महका जाये।
मेरी माँ से मैं था मैं फिर से चालीस साल पहले का बच्चा बन गया। मेरी माँ से मैं था मैं फिर से चालीस साल पहले का बच्चा बन गया।
आज फिर तेरे तसव्वुर ने नींद को इन आँखों से रूख़्स्त किया है। आज फिर तेरे तसव्वुर ने नींद को इन आँखों से रूख़्स्त किया है।