गुमनाम रास्ते हैं अनकही दास्तां
गुमनाम रास्ते हैं अनकही दास्तां
लिए हाथों में किताब निकल पड़ी वो किस राह,
सोच में डूबी वो लड़की कर रही मन में विचार,
लक्ष्य उसका तय नहीं जैसे बिन बादल मेघा बरसते,
वैसे उसका चंचल मन कब कहां किस मोड़ पे चल दे,
हवाओं में कुछ राज है बादल में काली छटाएं है,
चल पड़ी वो लड़की न जाने क्या सोच में,
विचारों का उमड़ रहा उसके मन में सैलाब है,
बिन कहे उसकी आंखों में झलक रहे अनेकों सवाल है,
राहों पर न जाने अभी कितने मोड़ आएंगे,
न जाने उसका मन कितनी करवटें बदलेगा,
किसे पता वो कौनसी मंजिल पर जाएगी,
और कहां उसके कदम रूकेंगे।