STORYMIRROR

Ruby Das

Inspirational

4.5  

Ruby Das

Inspirational

पहचान

पहचान

1 min
279


तुमने मुझे अशक्त समझकर

मुझ पर आघात प्रतिघात किया

मेरी निर्मल काया से खेल

तुमने प्रहार ही प्रहार किया


मैं संस्कार की पूजारीन

मैं सहन शालनी देवी

मैं वात्सल्य की मूरत

मैं प्रकृति की भव्य धारा 


मैं सृष्टि कर्ता तुम्हारी

तुमने ही मुझे भोग्य बना

सरे आम मंडित किया

तुमने ही बाजार गुलजार किया


अपशब्दों से मुझे नवाजा

क्रेता निर्जलता से बोली लगाया

मेरे रूह को क्षत-विक्षत किया

तुमने मुझे बेजार किया


मैं मौत की सोपान चढ़ने लगी

मेरी आर्तनाद सुनाई न दिया

तुम विजयी बन पताका फहराओगे

एक दिन तुम धोखा खाओगे


अपने ही अस्तित्व को खो दोगे

तुम्हारी बहन बेटी जब

मंडित हो सजेगी बाजारो में

संभोग के हवश मे तुम


उसे पहचान न पाओगे

उसे पहचान न पाओगे।


Rate this content
Log in

More hindi poem from Ruby Das

Similar hindi poem from Inspirational