दौड़
दौड़


बचपन से सुना है
जंगल में आग लगी, दौड़ो भाई दौड़ो
पर शहरीकरण में अब,
जंगल तो रहे नहीं
पर दौड़ बदस्तूर जारी है !
बच्चे के एडमिशन की दौड़,
तो कभी ट्यूशन की दौड़
नौकरी के लिए दौड़,
तो कभी छोकरी के लिए दौड़
दहेज के लिए दौड़ तो
कभी गाड़ी-बंगले के लिए दौड़
सत्ता पाने के लिए दौड़,
तो कभी कुर्सी पाने की दौड़
कहीं पर धन की दौड़,
तो कहीं बस अन्न के लिए दौड़
फ्री में लोन पाने की दौड़,
तो कभी कर्ज माफी की दौड़
सबको पीछे छोड़कर,
आगे बढ़ जाने की अंधाधुंध दौड़
दौड़ ! दौड़ ! दौड़ बस दौड़ ही दौड़ !
जो खत्म होती है,
इंसान के खात्मे के साथ !
श्मशान में जाकर !
दौड़-दौड़ के क्या पाया बस "सिफर"
खाली हाथ आये थे
खाली हाथ गये
"फिर क्यों ये दौड़ !
क्यों ये दौड़ !"