नारी
नारी


नारी तुम महक हो उपवन की,
सुगंध प्रवाहित जन मन की ।
तुमने सब कुछ अर्पण किया,
अर्पण सर्वस्व समर्पण किया ।।
संस्कार भरे थे समाज समतल में,
समतल रोए पाजेब पगतल में ।
दुख धोए थे आंसुओं से अपने,
अपने ही लूट लिए सोने से सपने ।।
मानव दानव सा हो जाए जग में,
जग पुण्य पंख बिन लगे खग में ।
नारी श्रद्धा सुमन सी अर्पित हो,
अर्पित रिश्तों में सदा समर्पित हो ।।
भाग्य भीग रहा भीगे दामन पर,
मातम पसरा आज अंजुमन पर ।
यौवन पर कैसी नपुंसकता छाई है,
भरत वंश की मर्यादा खाक में मिलाई है ।।
सीता द्रोपदी की कैसी यह कहानी है,
भारत माॅं की छाती पर लहू आंख की पानी है ।
हाय! हाय!जीवन कैसी यह मर्दानी है?
देखो भगत आजाद व्यर्थ तुम्हारी कुर्बानी है।।
रणचंडी के खप्पर में रक्तधार अनिरुद्ध रहा,
अत्याचार से ममता का अब महायुद्ध रहा ।
जगद्गुरु जगत में गुरुता अब अवरुद्ध रहा ,
नारी तुम नारायणी कहता सदा ही बुद्ध रहा ।।
मलिन ममता की दामन अब शुद्ध होनी चाहिए,
स्खलनशील यौवन में प्रबुद्ध होनी चाहिए ।
अनाचार को देशभक्ति संग द्वंद्वयुद्ध होनी चाहिए,
रक्षित कर बेटियॉं समाज विशुद्ध होनी चाहिए ।।