गुल्लक
गुल्लक
खन-खन खन-खन गुल्लक बोले,
खोलो जल्दी, मेरा मन यह बोले।
डालू इसमें रोज़ रुपैया,
और नाचे मन ताताथैया।
तोड़नेमे कुछ दिन की है देरी,
कब आएगी वह सुबह सुनहरी।
उन पैसो से क्या में लूँ ?
बिस्कुट लूँ , चॉकलेट लूँ,
या माँ के लिए एक तोहफा लूँ ?
इन विचारों में मन ऐसा उलझा,
दे दिया माँ को गुल्लक ही तोहफा ।
बोली माँ ,"ईश्वर को हाथ जोड़ो,
फिर इस गुल्लक को तुम ही तोड़ो। "
तोड़ गुल्लक निकले ढेर से पैसे ,
चमत्कार होते है ऐसे।
पैसे देख माँ मुस्कुरायी,
और उनकी आंख भर आयी।
