जहाँ उड़े धुँआ
जहाँ उड़े धुँआ
निकली उस गली जिस दिन,
देखा मैंने पहली बार।
उड़ गयी तबसे मेरी नींद,
सामने आता है वो दृश्य बार - बार।
उम्र थी उसकी करीब सात,
बैठा था अपने दोस्तों के साथ।
समय था पाठशाला जाने का,
बोला जूथ माँ से छुपाने का।
गई उस गली में मैं फिर वहां,
हाथ में थी वही सिगरेट।
अबकिबार साथ मेरे थी उसकी माँ,
लगादी उसे एक चमेट।
बुरी सांगत का है ये इनाम,
सिगरेट ने जिसको छुआ।
ज़िन्दगी बन जाये हराम,
जहाँ उड़े धुआं।