बदलता ज़माना
बदलता ज़माना
दादाजी मेरे खत लिखते,
हर महीने के चौथे हफ्ते।
डाकिया लेके आता खत,
कहता मैं,"किसी और को देना मत "।
याद है मुझे इक महीने आया न कोई खत,
इंतज़ार किया मेने सुबह से शाम तक।
बहने लगे आँखों से पानी,
क्या होगी बात अनजानी?
सुबह उठकर देखा मैंने,
नया टेलीफोन था मेरे सामने।
बाबा ने बड़ा नंबर दबाया,
फ़ोन को मेरे कान से लगाया।
कुछ क्षणों में बोले दादा,
"कैसे हो मेरे प्यारे मुन्ना ?"
फिर बहने लगे आँखों से पानी,
पर अब नथी थी बात अनजानी।
खत लिखने फिर हुए मंद,
फ़ोन पे बातें हुई बुलंद।
धीरे धीरे में बड़ा हुआ,
विज्ञान का फिर उड़ा धुंआ।
हाथ में मेरे मोबाइल आया ,
खुश हो कर मैं नाचा-गाया।
तुरंत लगाया दादाजी को फ़ोन,
सुनकर बाते में रह गया मौन।
दादी बोली एक ही बात,
"तेरे दादा अब नहीं हमारे साथ"
फिर आँखों से निकले पानी,
दबी रह गई मेरी वाणी।