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Reena Ughreja

Abstract

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Reena Ughreja

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व्यायाम

व्यायाम

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दादी मेरी देखूँ हर दिन,

करती वह रोज़ व्यायाम।

भूले न वह एक भी दिन,

कभी सुबह तो कभी शाम।


मैं भी करता उनके साथ,

टेड़े मेढे व्यायाम।

सर निचे और ऊपर हाथ,

बनगया मेरा व्यायाम।


बोली दादी," आंखे अपनी बंध करो",

और लम्बी एक सांस भरो।

कुछ देर तक उसे रोको,

फिर सांस छोड़कर आराम करो।


दादी समजाती एक ही बात,

व्यायाम करना है अच्छी बात।

इससे जोड़ो अटूट साथ,

सुबह की हो ऐसी शुरुआत।


आज जब मैं बड़ा हुआ,

देखि मैंने एक नई दिशा।

व्यायाम ने मुझे कुछ ऐसे छुआ,

बन गया मेरे जीवन का अहम हिस्सा।


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